गुरुवार, २५ जानेवारी, २०२४

राम लला को अर्पित एक माला

 



धन्य धन्य भारत देश ,धर्म और यहाँ की अर्वाचीन संस्कृति जो कईयोको करती आकर्षित ,
पाषाण को देव बनाने की कला और प्राण प्रतिष्ठा की साधना समस्त विश्व को  कर गई अचंभित ,
शब्दों की माला राम लला के चरणों में सश्रद्ध करती हूँ अर्पित ,
भावनाओ के धागे में बड़े छोटे ,रंग बिरंगी और सुगन्धित कई फूल किये हैं गुम्फित ,
श्री राम जय राम जय जय राम ,श्री राम जय राम जय जय राम ,
तन में मन में जन जन में बसा बस एकही नाम ,
रामही अगन ,रामही पवन ,रामही गगन ,
रामही अवनि ,रामही पानी ,
ब्रम्हान्ड हो या पिंड हर कण कण में तूही तू ,
चारों पुरुषार्थो में ,वर्णाश्रम वेदोंमें तूही तू ,
केवट हो या शबरी ,अहिल्या हो या सोने की नगरी ,
जटायु हो या भालू ,वानर हो या गिलहरी ,
चराचर का तू ही तू पालनहारी तारनहारी ,
भक्ती हो या शक्ती प्रेम प्रतिक्षा और तपस्या में मुक्ती की तृप्ती ,
श्रद्धा ,विश्वास निष्काम कर्म ,सदा अनुकरणीय तुम्हरी नीति ,
वाल्मिकी हो या तुलसी सकल रचनाकार राम चरित पर कोटि कोटि बलिहारी ,
न भूतो न भविष्यति ऐसा राम लला की प्राण प्रतिष्ठा ऊत्सव देख धन्य भई दुनिया सारी ,
नयनों और भावनाओं ने किया लल्ला पर जलाभिषेक ,सकल सनातन भयो एक पुजारी ,
जनसागर के स्वागत की माँ शरयू ने की अभूतपूर्व तैयारी ,
शतशः नमन भारत माता ,ॐ नमो नमो ,मोक्ष दायिनी अयोध्या नगरी ,
राम से राष्ट्र और देवसे देश तक करने चेतना विस्तार वचन बद्ध कारसेवक ,राजा और सहकारी ,
अब प्रजा को कर्तव्य पूर्ति हेतू कसनी होगी कमर ,स्वाभिमान रक्षण हेतू  सब उपरवाले के आभारी ,
भारत माँ के चरणोंकी सेवा हेतू सदा तैयार रहे असंख्य भारतवासी बनकर  महाबली ,पवन सुत रामदूत ,गदाधारी ,
अयोध्या का अर्थ जहाँ हो ना युद्ध ,प्रश्न सुलझे सुसंवाद से ,किन्तु दण्डित तो होगाही अत्याचारी ,
फिजूल की माँगो  के लिए नाहो दंगा फसाद ,मोर्चे ,मारपीट,कृत्य कोई विनाशकारी ,
मार्ग क्रमण हो व्यक्ती से समष्टी की ओर ,कर्म वही जो देश के सर्वांगिण विकस में हितकारी ,
वसुधैव कुटुम्बकम ”की भावना का जतन -वर्धन करनेहेतु मानवको  दो सदबुद्धि दशरथ नंदन -अवधबिहारी ,
जय श्रीराम ,कौशल्या नंदन ,मर्यादापुरुषोत्तम -सीताराम-कोदंड धारी  I 
         आसावरी जोशी