होरी
मनमोहन ब्रिन्दावन में राधारानी संग खेले होरी ,
गोप गोपी संग ,अनहद नाद पे झूमे सगरी नगरी ,
को मोहन को राधा ,को गोपी को गोप सुदही सारी बिसरी ,
जनसागर संग नाचे गाये नद -नाले ,कदम्ब ,कोकिल ,कजरी ,
भक्ती रंग में डूब गये ,ब्रज भूमि के सगरे नर -नारी ,
धो ना पायो लोकलाज का जल ,ताने -बाने में थी प्रेमरंग की बुनकारी .
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