सोमवार, २९ ऑगस्ट, २०१६

सिद्धार्थ गौतम बुद्ध -आचार्य सत्यनारायण गोयन्काजी के प्रवचनोका सार

           सिद्धार्थ गौतम बुद्ध -आचार्य सत्यनारायण गोयन्काजी के प्रवचनोका सार -विपश्यना शिबिर २५-२-२००९से ८-३-२००९ तक 
आचार्यजीके प्रवचन मानो पुराने आयनेकी धूल झटककर ,खुदको अंदर -बाहरसे देख सकना ,
नाबोलना ना हिलना डुलना ना बाहर कुछ देखना ,मनकी एकाग्रता से ,अपने अंदर झाँकना ,
नाहो भोक्ता भाव ,हर सुख -दुःख के क्षण को ,समता -साक्षी भाव से देखना ,
तृष्णा (इच्छा ) के बालक को ,वशकी लोरी से मिठी गहरी नींद सुलाना ,
विकारोके पौधो को बंद करदो सिंचना ,अनचाहा पौधा पनपेतो सीखो उखाड फेकना ,
मोलॅसिस यादि नही चाहिये ,बंद करदो चीनी का कारखाना,
मन अपने पर हावी होतो ,सीखो मन पर राज करना ,
विपश्यना का रस अमृतसा ,सबको अपना अपनाही चखना ,
"भवतु सब्ब मंगलम "-साधु ..... साधु ..... साधु ... आशिर्वचन सबको शिरोधार ,
सम्यक शील -समाधी -प्रज्ञा से ,सबके लिये खुला निर्वाण का महाद्वार ,
गौतम हुए बुद्ध ,सिद्ध +अर्थ किया तन -मन का तृष्णा रहित व्यवहार ,
शरणागति स्वीकार हो ,नवम बुद्ध अवतार  ........ 

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