गुरुवार, २० एप्रिल, २०१७

शमा -परवाना

                    शमा -परवाना 
परवाना मरकर भी अमर हुआ ,जिसके प्यार में ,उसका नाम था शमा ,
जमाना देखता रह गया ये नजारा ,ये दहला देने वाला समा ,
वरना हम क्या चीज थे ?लोग बुलाते थे हमें आशिक -ए -निकम्मा ,
आखरी दमतक प्यार को पाने की कोशिश करना ,ऐसा जिद्दी हमारा मिजाज ,
इसीलिये इकतर्फा इशक की मिसाल हैं आज ,
परवाने प्यार में मर मिटने वालोंके बन गये सरताज ,
मुशायरों में चारचाँद लगाता इनका शायराना अंदाज ,
बीच में टोंकते हुए -शमाने कहा -मुझे भी आपसे कुछ कहना है खास ,
मेरे अंदर भी दिल धडकता है ,और बंद है उसमें ,प्यारका एहसास ,
पर मेरे प्यार से ज्यादा ,मुझे फिक्र है लोंगोकी ,जो मुझसे लगाये बैठे हैं आस ,
दुनियाके गमोंका अंधेरा दूर करने के वास्ते ,मुझे मरना गंवारा नही ,उन्हे करके हताश ,
तेल की आखरी बूंद तक ,हरदम चलती रहनी चाहिये मेरी साँस ,
किसीके खातिर मरने से भी मुश्किल है ,किसीके लिये जीना ,बगैर हुए उदास ,
कोई समझ पाता ,इस दर्द के एहसास को काश !!!!!!!!!!!

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