अग्निपरीक्षा
आज अचानक , एक विषाणू ,बन खडा भस्मासुर ,
सारी दुनिया अलग अलग वजहोसे चिंतातुर ,
हरपल मर मरकर ना जी ,उभर डर से उपर ,
असुर तो आते जाते ही रहेंगे ,रूप बदल बदल कर ,
कोरोना से डरोना ,लडना होगा मानवता को यम -नियमोका पालन कर ,
मुश्कील घडी ही सिखलाती हमको पितल -सोने में अंतर ,
स्वीकृती -संस्कृती—स्वाभिमान -अस्तित्व की करनी होगी रक्षा ,अग्नि परिक्षा देकर ,
बहुतेरे कह गये संकट को समझो एक सुनहरा अवसर ,
होनाही होगा हम सबको , परिश्रम पूर्वक आत्म निर्भर ,
ए जिंदगी,कुछ अच्छा कर गुजर , जीवन हो जाए सदा के लिये अमर ,
“वसुधैव कुटुम्बकम “का मंत्र हो हम सबकी जिव्हा पर .
आसावरी जोशी
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